सर्व: जन: हिताय:,सर्व:जन: सुखाय:
- पारंपरिक शिक्षा, एक संस्कृतिक और इतिहासिक मान्यता है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ज्ञान और अनुभव को संचारित करती है। यह शिक्षा विद्यालयों और अध्यापकों के माध्यम से होने वाली तकनीकी शिक्षा से भिन्न होती है और ज्ञान, मूल्य, संस्कृति, रीति-रिवाज और विचारों के संकलित धारण को प्राथमिकता मिलती है।
- पारंपरिक शिक्षा में, एक गुरु या शिक्षक एक छात्र को मार्गदर्शन करके शिक्षा देता है और छात्र उनके संप्रदाय, अनुभव, और अधिकारों को समझकर उनके मार्ग पर चलते हैं। यह गुरु-शिष्य संबंध गहरा होता है और परंपरागत शिक्षा की एक महत्वपूर्ण पहलु होती है।
- पारंपरिक शिक्षा में विद्यार्थी को जीवन के सभी पहलुओं, चरित्र निर्माण, नैतिकता, कर्मठता, सम्प्रदाय, सभ्यता और सामरिकता के बारे में शिक्षा प्राप्त होती है। छात्र अनुभव करते हैं कि कैसे बाजार, काम, व्यवसाय, और परिवार के माध्यम से जीवन का एकीकृत संस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों का अनुसरण किया जा सकता है।
- पारंपरिक शिक्षा में संगठित रूप से शिक्षा प्रदान की जाती है, उदाहरण के लिए, गुरुकुल में या पारंपरिक पंथों में। यह शिक्षा विद्यार्थी को एक मानवीय बनाने के साथ-साथ व्यक्ति का समर्थन और स्वतंत्र विचार प्रदान करती है। पारंपरिक शिक्षा में अभिज्ञान, समाधान, आत्म उन्नति, और नैतिक तत्वों को विकसित करने की महत्ता होती है।
- हालांकि, पारंपरिक शिक्षा का उपयोग आधुनिक अवसरों और तकनीकी शिक्षा के साथ संघर्ष कर रहा है। एक सामर्थ्यवान, वैचारिक और अद्यतित युवा पीढ़ी का आना, जो विद्यालयों और तकनीकी संस्थानों से प्रशिक्षण प्राप्त करती है, पारंपरिक शिक्षा की महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली भूमिका को चुनौती प्रदान करता है।
- आध्यात्मिक शिक्षा, मन और आत्मा के संबंधों को समझने और विकसित करने का प्रक्रियाधारित तरीका है। यह शिक्षा व्यक्ति को आत्म स्वविकास, आध्यात्मिकता, ध्यान, मनोनियंत्रण, अलौकिक ज्ञान, और सत्य के आदर्शों और मूल्यों की प्राप्ति में सहायता करती है।
- आध्यात्मिक शिक्षा में मनोनिर्माण, चरित्र निर्माण, स्वविकास, और मूल्यों की अवधारणाओं के प्रदर्शन पर ध्यान दिया जाता है। यह शिक्षा विद्यार्थियों को अवधारणाओं, सिद्धांतों, और वैदिक विचारधारा की समझ प्रदान करती है और उन्हें स्वयं को, अपने परिवार, समाज, वातावरण, और ब्रह्मांड के साथ संबंधों की महत्ता के प्रतीक्षा करने का प्रेरणा देती है। इसका उद्देश्य एक पूर्ण और सत्यापर जीवन उपरांत मोक्ष की प्राप्ति है।
- आध्यात्मिक शिक्षा के अंतर्गत, मार्गदर्शन, प्रार्थना, मन्त्र जाप, साधना, सेवा, स्वाध्याय, ध्यान, और सन्यास के तत्वों को शामिल किया जाता है। यह शिक्षा मन को शान्त, स्थिर, और विचारशील बनाने, अलौकिक सत्य की प्राप्ति, और आत्मोद्धार के लिए प्रोत्साहित करती है। आध्यात्मिक शिक्षा अन्तरंग स्थिति को पहचानने में मदद करती है और प्रकृति और ब्रह्मांड के नियमों की समझ प्रदान करती है।
- आध्यात्मिक शिक्षा सभी धर्मों और संस्कृतियों के अंतर्गत अपनी खासता रखती है और विभिन्न धार्मिक आदर्शों, सत्य, प्रेम, दया, सेवा, धर्म, और नैतिकता के माध्यम से मानवता के विकास को सराहती है। इसका उद्देश्य व्यक्तित्व निर्माण, सच्चे मानवीय संबंध, और अपार आनंद के मार्ग में अभिप्रेरित करना है।
- आध्यात्मिक शिक्षा मानव विकास के साथ उच्चतम पथ दर्शन कराती है और व्यक्ति को उन्नति, प्रगति, और पूर्णत्व की ओर प्रवृत्त करती है। यह शिक्षा अन्तरंग दिशा, गहराई, और सार्थकता की प्राप्ति के माध्यम से अपने जीवन को परिवर्तन करने में मदद करती है और इसके फलस्वरूप एक आदर्श और पूर्ण जीवन का अनुभव करने की क्षमता प्रदान करती है।
- भारतीय नृत्य, भारतीय संस्कृति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और रंगमंच कला का एक प्रमुख अंग है। इसमें भारतीय संगीत, ताल, अभिनय, और नृत्य का समन्वय होता है और रंगीनता, सौंदर्य, भावना, और कला की ऊर्जा को प्रस्तुत करता है। भारतीय नृत्य यह सिद्ध करता है कि मनुष्य की आन्तरिक अभिव्यक्ति, संगीती, और साहित्यिक विस्मरण कार्यक्षेत्र के रूप में कला के माध्यम से सम्पादित की जा सकती है।
- भारतीय नृत्य कई प्रमुख प्रशाखाओं में विभाजित है, जिनमें कथक, भरतनाट्यम, ओड़िसी, कुछिपुड़ी, मोहिनीअट्टम, सतरा रास, आंध्र नृत्य, कुचिपुड़ी, काथकाली, विलास नृत्य, लवनी, और चौफ़ाल आदि शामिल हैं। प्रत्येक प्रशाखा अपनी आकृति, ताल, गति, आवाज, और अभिनय के माध्यम से अपनी खासता और सौंदर्यता लाती है। नृत्य के रूपों में मार्ग और मर्म एकान्त कला, क्षेत्रीय कला, संघीय कला, और न्यासी अभिनय का समावेश होता है।
- भारतीय नृत्य का मूल आधार भारतीय नाट्यशास्त्र में विवरण किया गया है, जो भारतीय नृत्य और नाट्य की प्राचीनतम प्रथाओं का विज्ञान है। यह नाट्यशास्त्र ब्रह्मा, शिव, विष्णु, काला, रस, भावना, ताल, नटी, वचन, हास्य, आभिनय, प्राणियों की मिटटी, आंगन या राग में अवतार, महापुरुष, चरित्र, नायिका और कक्षा, और गायन की विधाओं की व्याख्या करता है।
- भारतीय नृत्य का उद्देश्य भाव की भूमिका का प्रदर्शन करना है, जो रसों की अर्थात्मक रूप से मान्यता देता है। इसका मकसद दर्शकों को उनके आनंद और ज्ञान का प्रदर्शन करना है, जो उत्कृष्टता, ऊर्जा, और भाव एवं भावनाओं की एक दृश्य और अनुभव का संवेदी हिस्सा होता है। भारतीय नृत्य व्यक्ति को सामराज्य, स्वतंत्रता, और सात्त्विक रंगमंच कला के साथ कर्मठ करता है। यह एक सौंदर्यपूर्ण, आनंदमय, और मनोहारी कला है जिसमें भावना, लचीलापन, और मौसम एकता का अद्वितीय समन्वय होता है
- भारतीय संगीत, भारतीय संस्कृति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और एक प्राचीन और प्रशंसित कला रूप है। यह एक मनोहारी कला है जिसमें अद्वितीय संगीती, ताल, गायन और वादन का समन्वय होता है। भारतीय संगीत एक संवादात्मक भाषा है, जिसके माध्यम से भावनाएं, रस, और विभिन्न भावों को व्यक्त किया जाता है।
- भारतीय संगीत में मेलोडी (राग), ताल, स्वर (नोट्स), लय (ताल की स्थिरता और गति), गायकी और वादन के तत्व होते हैं। इसका आधार भारतीय संगीत शास्त्र में विवरणित किया जाता है, जिसमें संगीत के सिद्धांत, नियम, एवं विवेचन का वर्णन होता है। राग, पूर्वांग, उत्तरांग, रस, आलाप, तान, पल्लवी, चरण, मुखड़ा और तालमान के तत्वों का निरूपण होता है।
- भारतीय संगीत में कई प्रमुख शैलियाँ हैं, जैसे कर्णाटक संगीत, हिंदुस्तानी संगीत, राजस्थानी संगीत, पंजाबी संगीत, बंगाली संगीत, तामिल संगीत, तेलुगू संगीत, मलयालम संगीत और गुजराती संगीत आदि। प्रत्येक शैली अपनी विशेषताएं, ऋति, गति, स्वरुप, और वाद्ययंत्र के प्रयोग के माध्यम से अपनी बहुमुखीता लाती है।
- भारतीय संगीत का उद्देश्य रस, योग, गम्भीरता, ऊर्जा, सौंदर्य, और आनंद जैसी भावनाएं जगाना है। यह अद्वितीयता, गहराई, और व्यापकता की अनुभूति कराता है और शांति और संगठन के लिए वाद्य, गायन, और नृत्य की प्राकृतिक अभिव्यक्ति को बढ़ावा देता है। भारतीय संगीत अनुकरणीय और लघुताओं के माध्यम से अनेक संगीत प्रदान करता है जो विभिन्न भाषाओं, संगीत प्रदेशों, और संस्कृतियों की प्रतिभाओं को समर्पित है।
- भारतीय संगीत का महत्त्वपूर्ण अंश एक मिलन समारोह में गतिविधियों (संगीत और नृत्य), गुणवत्तापूर्ण मोहक माहौल, लोगों के बीच साझा अनुभव, तालीम की परंपरा, और संगीत गुरु-शिष्य परंपरा में छिपा है। यह संगीत लोगों के मनोहारीकरण का माध्यम है और सार्वभौमिक एकता के भाव को प्रकट करके उन्नति और सौंदर्यमयी समृद्धि का उद्दीपन करता है।
- भारतीय खेलों का महत्त्वपूर्ण स्थान भारतीय संस्कृति और परंपराओं में है। ये खेल भारतीय जीवनशैली का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं और स्वास्थ्य, सामरिक उत्साह, और टीमवर्क की भावना को बढ़ावा देते हैं। भारतीय खेलों में पारंपरिक खेल और मुकाबले शामिल होते हैं जिनमें कबड्डी, खो, गुलि-दंड, खेती, जिवाण, लूडो, दांडीयुद्ध, गिल्ली-दंडा, पिठू, डंडा-खेल, सतोदिया, विजया-दशमी, ध्वजारोहण, और कई और शामिल हैं।
- इसके अलावा, भारतीय खेल में क्रिकेट, हॉकी, कबड्डी, फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन, ताल में दम और गोल्फ जैसे अंतर्राष्ट्रीय खेल भी प्रमुख हैं। ये खेल भारतीय खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शोभा देते हैं और विभिन्न महत्वपूर्ण खेल इवेंट्स, जैसे कि क्रिकेट विश्व कप, हॉकी विश्व कप, ओलंपिक, एशियाई खेल, विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप आदि में भाग लेते हैं।
- भारतीय खेल भावनात्मकता, संघर्षशीलता, एकता, समरसता, आदेश-में सुव्यवस्था, नैतिकता, और प्रतिस्पर्धा के माध्यम से विशेष महत्त्वपूर्ण सबकेद्वारा संस्कृति को प्रदर्शित करने में मदद करते हैं। इन खेलों का महत्त्व सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ही नहीं होता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- भारतीय खेल में परंपरागतता और संघर्षशीलता की खास संकेतों को दिखाता है और सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को प्रशंसा करता है। ये खेल भारतीय जीवनशैली की प्रतिष्ठा करते हैं और युवा पीढ़ी के बीच विरासत और गर्मजोशी का माध्यम बनते हैं। भारतीय खेल दिवस (29 अगस्त) जैसी आयोजन की बढ़ती हुई महत्त्वपूर्णता और देशभक्ति की प्रतीक्षाओं को प्रतिष्ठित करता है।
- समर्पित और प्रतिभाशाली खिलाड़ी, शौर्य, सामरिक उत्साह, और गर्वसे भरपूर खेल कला कर रहे अथलेटों ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर गर्व दिलाया है और उन्हें प्रशंसा और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। भारतीय खेल दुनिया भर में लोकप्रिय हैं और संघर्ष, सामर्थ्य, और अद्वितीयता के लिए प्रशंसा हासिल करते हैं।
- आध्यात्मिकता और अवस्थानुभव के माध्यम से मन, शरीर और आत्मा के संयोग को स्थापित करने के लिए एक प्राकृतिक अभ्यास है। ये दोनों क्रियात्मक प्रक्रियाएं सामग्री को निगरानी करने, मनोसंयम प्राप्त करने, मन को शांत करने और अद्वैत अनुभव करने की प्रशिक्षण देती हैं।
- योग का अर्थ है “संयुक्त होना” या “एकीकृत करना”। यह एक धार्मिक और आध्यात्मिक प्रथा है जो मानव जीवन को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक संतुलन में लाने का लक्ष्य रखती है। योग के अभ्यास द्वारा मन को रोका जाता है, जिससे स्थिरता, सुकून और संतुलन की अवस्था प्राप्त होती है। योग की प्रमुख प्रकारों में से कुछ हैं: हठ योग, राज योग, भक्ति योग, ग्यान योग, कर्म योग और कुंडलिनी योग। योग के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर, मन और आत्मा के साथ अद्वितीय एकता और मोक्ष का अनुभव करता है।
- ध्यान, मन की एकाग्रता और अवस्थानुभव के लिए एक प्राकृतिक अभ्यास है। ध्यान के द्वारा मानसिक तनाव को कम किया जा सकता है और मन को शांत, स्थिर और प्रशान्त बनाया जा सकता है। यह अभ्यास मन को एक विषय पर समर्पित करने और वर्तमान के आनंद को अनुभव करने के लिए प्रेरित करता है। आवास्यकतानुसार, ध्यान मन्त्र जाप, योगासन या अन्य ध्यान के तकनीकों के साथ अभ्यासित किया जा सकता है।
- योग और ध्यान के लाभ शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तरों पर प्राप्त होते हैं। ये काष्ठ का स्थान पुनरुत्पादन, मन की शांति, आत्म अभिवृद्धि, स्वस्थ शरीर, साधारण तनाव मुक्ति और उच्चतम ज्ञान की प्राप्ति में मदद करते हैं। ये अभ्यास भाग्यशाली और बेहतर जीवन के मार्ग में गहराहट और आनंद लाते हैं। योग और ध्यान सभी वयोमान के लोगों के लिए उपयोगी हैं और अधिकांश धर्मों, दार्शनिक परंपराओं और संस्कृतियों में मान्यता प्राप्त हैं।
रोजगार का महत्वपूर्ण भूमिका हमारे समाजिक और आर्थिक विकास में होता है। इसके कई लाभ हैं, जो मेरे निम्नलिखित हैं:
- आर्थिक स्थिरता: रोजगार से लोगों को आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है। यह उनकी आय का स्रोत बनाता है और उन्हें आय के अनुसार अपनी आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने की संभावना देता है।
- स्वावलंबन: रोजगार मिलने से लोग स्वावलंबी बनते हैं और अपनी जरूरतों को स्वयं पूरा करने की क्षमता विकसित करते हैं। इससे उनका स्वाभिमान बढ़ता है और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का मार्ग मिलता है।
सामाजिक मान्यता: रोजगार से अवकाशी पदों पर काम करने का अवसर मिलता है, जिससे लोगों की सामाजिक मान्यता और सम्मान में सुधार होता है। जब व्यक्ति उपायुक्त काम करता है और योग्यता और प्रतिभा का प्रदर्शन करता है, तो समाज में उन्हें मान्यता और सम्मान प्राप्त होता है। - विकास का अवसर: रोजगार से लोग नए कौशल और अनुभव प्राप्त करते हैं जो उनके व्यक्तिगत और पेशेवर विकास में मदद करते हैं। इससे लोग अपनी क्षमताओं को निखारते हैं और अपने करियर में आगे बढ़ने का मौका प्राप्त करते हैं।
- सामाजिक रूप से उच्चस्थान: रोजगार मिलने से लोग समाज में उच्च स्थान प्राप्त करते हैं और अपने परिवार और समुदाय के लिए ढाई से गरिमा बढ़ाते हैं। इससे समाज और समुदाय का विकास होता है और सामुदायिक सेवा और समाज सेवा बढ़ती है।
यहां तक कि अधिकांश देशों में रोजगार के लिए नियुक्ति मानदंड वित्तीय सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ और अन्य लाभों के साथ आता है। रोजगार के द्वारा, एक व्यक्ति अपने जीवन में स्थायित्व और संतुष्टि का महसूस करता है।
- संस्कृति और सभ्यता दोनों एक ही मानवीय विकास के ऐसे पहलु हैं जो मानव समाज को मूल्यों, मान्यताओं, आचार-व्यवहारों, रीति-रिवाजों और कला-संस्कृति से जोड़े रखते हैं। संस्कृति और सभ्यता में प्रतिस्पर्धा नहीं होनी चाहिए, बल्कि ये दोनों नगरों के साथ साथ विकास करने वाले होने चाहिए।
- संस्कृति मानव समाज की सबसे महत्वपूर्ण पहलु है जो मानवीय समाज की पहचान तथा समग्रता को आदान प्रदान करती है। संस्कृति एक समुदाय की भाषा, धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं, संस्कृत शास्त्रों के माध्यम से प्रस्तुति, कला और सौंदर्य की आदान-प्रदान, विचार, अभिव्यक्ति और संगीत की सुलझाव और लोकत्याग आदि के माध्यम से पहचानी जाती है।
- सभ्यता मानव समाज की संस्कृति को संरचित रूप देती है। यह मानव समाज की संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और लोगों के बीच संबंधों को निर्धारित करती है। सभ्यता में स्वार्थ, आवश्यकता के अलावा मानव भावनाओं, नैतिक्य, सामान्य तरीकों, नियमों, उच्चतम मान्यताओं और न्याय की महत्ता को विशेष महत्ता दी जाती है। ये भूमिका व्यक्ति के नैतिक और आध्यात्मिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- संस्कृति और सभ्यता दोनों मिलकर मानव समाज की प्रगति, एककता, आदान-प्रदान, समृद्धि के माध्यम से विकास करते हैं। इसलिए, हमें संस्कृति और सभ्यता के प्रति सम्पूर्ण समर्पण और समान दर्जे में उन्नति का होना चाहिए
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