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माध्यमिक विद्यालय

पूर्व-प्राथमिक शिक्षा

पूर्व-प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे 3 से 5 वर्ष के बीच की आयु के होते हैं। ये बच्चे अपनी पहली शैक्षिक यात्रा पर होते हैं और इस दौरान उन्हें खेल-खुद, गतिविधियों, रंग-रंगोली, कविताएं, गिनती, और अन्य शैक्षिक कार्यक्रमों का मनोहारी माहौल मिलता है।

पूर्व-प्राथमिक विद्यालयों में की जाने वाली शिक्षा बच्चों को सामाजिक, भाषा, अंतर्विद्यालयी, और मानसिक विकास की प्राथमिक बुनियाद देती है। यहां बच्चों को सामग्री, दिखावटी और सुरमय पढ़ाई, नृत्य, मूसीक, कार्यशिलता, खेलने और सहभाग करने के साथ-साथ अधिक सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को सीखने का अवसर प्रदान किया जाता है।

पूर्व-प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम से बच्चों को न केवल शैक्षिक ज्ञान प्राप्त होता है, बल्कि इससे उनके सामाजिक और भावनात्मक विकास को भी प्रोत्साहित किया जाता है। ये विद्यालय बच्चों की आत्म-विश्वास, सामरिक योग्यता, और आपसी सहयोग को बढ़ावा देने का माध्यम होते हैं। इससे उनकी स्मृति और बोध क्षमता में सुधार होता है और वे शिक्षा के प्राथमिक मूल्यों को सीखने के लिए तैयार होते हैं।

प्राथमिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण में पूर्व-प्राथमिक विद्यालयों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। ये विद्यालय बच्चों को शिक्षा के मूल तत्वों के बारे में परिचित कराते हैं और उनकी स्मृति, गणना, बोध, एवं भाषा विकास को प्रोत्साहित करते हैं।

इस प्रकार, पूर्व-प्राथमिक विद्यालय बच्चों को उनकी आयु के अनुसार समर्पित विद्यालयी अनुभव, सहसंगठन कौशल, और शिक्षात्मक निर्माण प्रदान करते हैं जो उनके संपूर्ण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्राथमिक शिक्षा

प्राथमिक शिक्षा के दौरान पढ़ने वाले बच्चे 6 से 10 वर्ष की आयु के होते हैं। ये बच्चे अपनी शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर होते हैं और इस दौरान वे प्राथमिक शिक्षा के मूल तत्वों को सीखते हैं।

प्राथमिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों को पठन और लेखन, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, और अन्य विषयों में आधारभूत ज्ञान प्रदान करना होता है। इसके साथ-साथ, इस अवधि में उन्हें कौशल, योग्यता, उच्चतर विचारशक्ति, और संवेदनशीलता विकसित करने का अवसर मिलता है।

प्राथमिक शिक्षा उन्हें अनुशासन, नैतिक मूल्यों, और सहयोग के महत्व के बारे में शिक्षित करती है। इसके अलावा, यह उन्हें संगणक, हस्तलिखित, भूगोल, इतिहास, कला, और खेल-कूद के मौलिक ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक कौशल और सहभागिता को भी सिखाता है।

प्राथमिक शिक्षा के दौरान, बच्चों को उनकी भाषा, सामाजिक, भौतिक, और मानसिक विकास के साथ-साथ तकनीकी कौशल और सृजनात्मकता को भी प्रोत्साहित किया जाता है। इस दशक में, उन्हें विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि उनकी एकंगता, सोचने और समस्याओं को हल करने की क्षमता, और समृद्धिकरण विकसित हो सके।

प्राथमिक शिक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा भारतीय शिक्षा प्रणाली में होता है और बच्चों को आनंददायक, सक्रिय, और सत्रज्ञानी विद्यार्थि बनाने का अवसर प्रदान करता है। प्राथमिक शिक्षा के प्राप्त होने से बच्चे आगे की शिक्षा के माध्यम से और भविष्य के लिए तैयार होते हैं

माध्यमिक शिक्षा

माध्यमिक विद्यालय के बच्चे होते हैं जो 14 से 18 वर्ष की आयु के होते हैं। ये बच्चे उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के विद्यार्थी होते हैं और इस दौरान उन्हें विभिन्न विषयों पर गहन अध्ययन करने का मौका मिलता है।
माध्यमिक विद्यालय के बच्चों को अपने शिक्षानुभव में अधिक गहराई मिलती है और ये उनके विचारधारा, भौतिकी, रसायन, गणित, भूगोल, इतिहास, सामाजिक विज्ञान और विद्युत शास्त्र के विषयों पर विपुल ज्ञान प्राप्त करने के लिए अवसर प्रदान करती है।
माध्यमिक विद्यालय शिक्षा के दौरान बच्चों को अधिकांशतः विद्यार्थी संगठन और विद्यार्थी काउंसिलों का हिस्सा बनने का अवसर मिलता है। ये आरामदायक और योग्यतापूर्ण संगठन प्रशिक्षण, मनोनयनशीलता, और लीडरशिप कौशल को समर्पित होते हैं।
माध्यमिक विद्यालय शिक्षा छात्रों को समाजिक और नैतिक मूल्यों, अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में ज्ञान प्रदान करती है। इसके अलावा, छात्रों को यौन शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन कौशल, और सामाजिक सहयोग भी सिखाती है।
माध्यमिक विद्यालय शिक्षा छात्रों को उच्च शिक्षा और करियर के लिए तैयार करती है। यह इनका आत्म-विश्वास, विचारशक्ति, और व्यावसायिक कौशल को विकसित करती है। छात्रों को उच्च शिक्षा या व्यावसायिक पाठ्यक्रम की चयन स्वतंत्रता दी जाती है, जिससे उनके प्रभावस्वरूप भविष्य में सफलता और संतुष्टि मिल सकती है।

समर्थित और प्रेरित किए जाने वाले माध्यमिक विद्यालय छात्र, उच्च शिक्षा के पथ पर बढ़ने में नेतृत्व करते हैं और सामाजिक, पेशेवर और नैतिक मूल्यों को अपनाते हुए समाज के सेवा में सक्षम रहते हैं। माध्यमिक विद्यालय शिक्षा तत्परता, स्वाधीनता, और नवाचार के माध्यम से छात्रों में विचारशक्ति और उच्चतम मानक को प्रोत्साहित करती है।

उच्चतर माध्यमिक शिक्षा

उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के बच्चे उच्चतर माध्यमिक विद्यालय 16 से 18 वर्ष की आयु के होते हैं। ये बच्चे हाईस्कूल या इंटरमीडिएट के स्तर पर पढ़ाई करते हैं और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा की दिशा में तैयारी करते हैं।
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के बच्चों को अपने अध्ययन के पथ में विशेषज्ञता प्राप्त करने का मौका मिलता है। ये छात्र अपनी उच्चतर माध्यमिक परीक्षाओं की तैयारी करते हैं और उन्हें विभिन्न विषयों में विस्तृत ज्ञान प्राप्त होता है।
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों को उच्चतर शिक्षा के लिए तैयार करना होता है। इसके दौरान छात्रों का विचारधारा और विषयगत समझ मजबूत होता है और उन्हें विद्यार्थी जीवन के नए अनुभवों का सामर्थ्य विकसित होता है।
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय शिक्षा के दौरान, छात्रों को विभिन्न विषयों के मुख्यता पर ध्यान केंद्रित करके कृत्रिम और संशोधित प्रयोगशालाओं का उपयोग करने का भी अवसर मिलता है। ये अवसर उन्हें विज्ञान, गणित, भूगोल, भौतिकी, रसायन शास्त्र और अन्य साइंस संबंधी प्रयोगों के साथ-साथ प्राथमिक स्वास्थ्य विज्ञान और कंप्यूटर विज्ञान की गहरी ज्ञान प्राप्ति का भी मौका देते हैं।
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
शिक्षा के दौरान छात्रों को उच्च शैक्षिक कौशल, समस्या हल करने की क्षमता, विमर्शात्मक नजरिया, और लेखकीय कौशल को भी विकसित किया जाता है।
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
शिक्षा छात्रों को विभिन्न उच्च शिक्षा के विकल्पों को समझने में मदद करती है और उन्हें विचारशक्ति, स्वतंत्रता, और नैतिक दिशा में मजबूत बनाती है। छात्रों को उनके भविष्य के लिए तैयार करती है और उन्हें उच्चतम शिक्षा, पेशेवर पाठ्यक्रम, और सामयिक मुद्दों के साथ व्यावसायिक करियर के लिए तैयार करती है।

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