बृज वृन्दावन संस्कृति एवं शैक्षिक फाउंडेशन



ब्रज वृंदावन कल्चर एंड एजुकेशनल फाउंडेशन एक सामाजिक संगठन है जो शिक्षा, सांस्कृतिक विकास और सामुदायिक उत्थान के लिए संगठित होता है। यह फाउंडेशन भारतीय संस्कृति को संजोने और प्रशंसा करने, व्रज वृंदावन क्षेत्र के समर्थन में योगदान देने, और आम जनता को शिक्षा के जरिए उपलब्धि के अवसर प्रदान करने का लक्ष्य रखता है।
यह संगठन भारतीय शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देता है और गौरवग्राम पंचायती उपक्रम के तत्वों को सपूर्ण करना चाहता है। इसकी मुख्य गतिविधियों में शिक्षा केन्द्र, सामुदायिक विकास कार्यक्रम, आर्थिक स्वायत्तता कार्यक्रम, बालवाडी, कला एवं संस्कृति कार्यक्रम, जनसंवाद कार्यक्रम और करियर संचालन कार्यक्रम शामिल होते हैं।
यह फाउंडेशन भारतीय विद्यालयों, कॉलेजों, और शिक्षाविदों के लिए विभिन्न शैक्षिक परियोजनाओं का समर्थन करता है और राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा, सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनीय आयोजनों में सहयोग प्रदान करता है। इसका उद्देश्य ब्रज क्षेत्र के संरक्षण और विकास, स्थानीय सांस्कृतिक परंपराओं का समर्थन, और छात्रों को शिक्षा और विकास के लिए संसाधन प्रदान करना है।
ब्रज वृंदावन कल्चर एंड एजुकेशनल फाउंडेशन इत्यादि विभिन्न आयोजनों और कार्यक्रमों का आयोजन करता है जो भारतीय संस्कृति, कला, विचारधारा, और शिक्षा को संवार्धित करते हैं। इससे लोगों को उच्चारण और संगीत, ग्रंथों, जीवन-कौशल और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में शिक्षा मिलती है।
माधव जी
ब्रज वृंदावन कल्चर एन्ड एजुकेशनल फाउंडेशन का जन्म गुरुकृपा की प्रेरणा से विचार के रूप मैं एक वर्ष पूर्व गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर वृंदावन धाम मैं माधव जी को हुआ,जो आज सुचारू रूप से समस्त विश्व के समक्छ है,हरि-गुरु कृपा जब जीव पर हो जाती है वह समय ही मनुष्य के जीवन का जन्मदिवस होता है मुझे बताने मैं बहुत हर्ष हो रहा है मुझे बाल्यकाल से सन्तो का सानिध्य व माता पिता का भक्तिपूर्वक वातावरण का संग ओर सानिध्य का शौभाग्य प्राप्त हुआ,मैं किसी भावुकता मैं यह बात नही लिख रहा हु ,यह परम सत्य है मेरे जीवन मे गुरुकृपा ही सबसे बड़ा धन है ,मैं अपने विषय मे कुछ भी नही बता सकता सब हरि- गुरु कृपा है उसके अतिरिक्त माधव के जीवन मैं कुछ भी नही,ओर न ही कोई सामर्थ्य है जो यह विचार करता, यह सब गुरुकृपा का प्रसाद है अब मुझे आशा है आप सब भारतीय नागरिक मेरे इस संकल्प ओर उद्देश्य मैं सहायक बन कदम से कदम मिलाकर भारत के युवाओं को उन्नति व सफलता की ओर ले जाने मैं मेरा साथ देंगे।।राधे राधे।।

सा विद्या तन्मतिर्यया
भागवत 4.29.49
विषण *द्या वही है जिससे दोनों प्रकार का उत्थान हो। हम दो हैं, एक तो हम नाम दोनों का उत्थान आवश्यक है और ये विद्या से ही हो सकता है। अध्यापकों को प्रमुख रूप से बच्चों को यहीं शिक्षा देनी चाहिये कि दोनों उत्थान की ओर ध्यान देना है। केवल भौतिक उत्थान से कल्याण नहीं हो सकता आप लोग वर्तमान जगत् को देख रहे हैं। भौतिक उत्थान के द्वारा अनेक डेन्जरस आविष्कार कर-कर के भौतिक विज्ञानियों ने सारे संसार में भयानक वातावरण पैदा कर दिया हैं। जिसको हम लोग वर्तमान काल में आतंकवाद कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति भीतर से भयभीत है, अशांत है, टेन्शन में है। तो ऐसे भौतिक उत्थान को उत्थान नहीं कह सकते। हमें इस भौतिक विज्ञान के उपयोग के लिये भी आन्तरिक उत्थान करना चाहिये जिसमें हमारे दैवी गुणों की वृद्धि हो । दूसरे के प्रति सद्भावना हो, परोपकार की भावना हो, दया
की भावना हो, दीन हीन जीवों के प्रति भगवद् भावना के द्वारा सेवा भावना हो। ये सद्गुणों का का शरीर है और एक हम नाम की आत्मा है। विकास परमावश्यक है। जब तक ये न होगा तब तक कोई भी देश या विश्व सोने की लंका बन जाय तो भी अशान्ति ही परिणाम में प्राप्त होगी। इसलिये बच्चों के मस्तिष्क में यहाँ भरना है कि तुमको सद्गुणों के विकास पर भी विशेष ध्यान देना है। नम्रता, मीठा बोलना, माता पिता आदि गुरुजनों का सम्मान करना और अच्छे बच्चों का संग करना, अच्छी पुस्तकें पढ़ना जिससे हमारी बुद्धि में अच्छी-अच्छी भावनायें पैदा हों और हम एक दिन जैसे प्राचीन काल के गुरुकुल में विद्यार्थी तैयार होते थे उनमें भीतर सद्गुण भी रहता था, ऐसे ही हम अपने बच्चों को तैयार करें। हम आशा करते हैं हमारे अध्यापकगण हमारे इस निवेदन पर विशेष ध्यान देंगे और भौतिक पढ़ाई के साथ-साथ थोड़ी देर इस विषय पर भी प्रकाश डालते जायेंगे।
– जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज